1- सपने में ही सही लेकिन आज मै अपनी बस्ती को देखा
तिनके से बनी डूबते हुये कस्ती को देखा
जिन गलियों में मै खड़ा हू उन गलियों से
उस बस्ती में जाते हुये एक हस्ती को देखा
2- सारे आरजू बंद डिब्बे में पड़े रह जाते है
खुशिओ के दामन भी सिमट के रह जाते है
जिस नाम पर हम इतना लुभाते है
वह नाम भी एक दिन खाक में मिला दिए जाते है
3- जिस गली से मुझे गुजरना है उसे देख रहा हू
अनोखी तेरी काया के साथ यह काया भी देख रहा हू
हस्र मेरा भी होना है उन कलियों के जैसा
इसलिए अपने दिल के आईने में तुझे देख रहा हू
4- पैमाने देखकर मुझे भी डर लगता है इस कदर
अहले उल्फत के पहले फिजा मुरझाये जिधर
अब तो बस तुझे हर घडी देखने की चाहत है
तू रहे या न रहे बस तेरी चाहत रहे मेरे जिगर
5- तू उस बस्ती के बीच में इस कस्ती के बीच में
तू जाने जिगर में तू ही हर नजर में
तेरा पता तू खुद जाने मुझे क्या करना
हा डरना है तो खुद से तेरे बिना कैसे सवरना
6- करबध्द हो जाऊ आबध्द हो जाऊ
ख़ुशी या गम के साथ समबध्द हो जाऊ
किनारे मै खड़ा हू इस पार तेरी रहनुमाई के सहारे
ऐसी लगन लग जाये मुझे बस अपार हो जाऊ
मास्टर मुकेश