एक रात होती है चादनी रात
उसमे होती है सिर्फ चादनी की बात
ना कोई फूलो सा गन्ध उसमे न कोई रंग उसमे
न कलीयो सी कोई होती राज
फिर भी त्रिभुवन में उसी की होती बात
नर न नारी वह फिर भी सबके दिल की तरतार वह
रसिको को कुछ न भाये उसके बिना कुछ रास ना आये
स्वच्छ चादनी निर्मल मन बिना प्रिया के कैसे सब
बसंत बिहार गंदर्व मनाते बिना उसके शोक मनाते
राग रागिनी रास रचाते उसको ही सब राज बताते
है तारो से गहरा नाता उसके बिना कुछ न भाता
उससे न अच्छा जहा में कोई सबके दिल में पहले समता
चाद से चादनी न होती तो यह कैसे सच हो जाता
मधुर -मधुर मुस्कान उसकी प्रेम के नाम से जाना जाता
मास्टर मुकेश
