1- माँ मैंने कोलकाता को देखा
उन 42 खम्भों वाले आसमान को छूते हुए एक घर को देखा
स्वप्न से जगने वाले एक जीते जागते शहर को देखा
जो कभी भारत का दिल हुआ करता था उस कल को देखा
सच जो कभी विदेशियों की दिलरुबा हुआ करती थी उस सरपरस्ती को देखा
माँ मैंने कोलकाता को देखा
2- रवींद्र की भाओ भरी गोमती किनारे कविता को देखा
कलकत्ते के गलियारों में रामकृष्ण के सूरज को देखा
मै उन्ही स्ट्रीट रोड़ो पर खिचे हुये चाबुको को पकडे नरेंद्र को देखा
सच में माँ मै वहा नदी किनारे घटाओ के नीचे अपने सखा विवेकानंन्द को देखा
माँ मैंने कोलकाता को देखा
3- दक्षिणेश्वर में बैठे हुए उस महान सेवक रामकृष्ण को देखा
विद्यालय में एक मनोहर गीत गाते विलेश्वर को देखा
मानव सेवा करने वाले महान त्यागी विवेकानंन्द को देखा
सच में गेरुआ वस्त्र धारण किये हुए उस भारत के भविष्य को देखा
माँ मैंने कोलकाता को देखा
4- हावड़ा के स्टेशन पर विद्यासागर को सामान ढोते देखा
राजाराम को समाज में रुदियो के विरुद्ध लड़ते देखा
अब भी मै सुभाष को उस विद्यालय में पढ़ते देखा
सच में क्रांति के आग को वहा से निकलते देखा
माँ मैंने कोलकाता को देखा
5- जो गंगोत्री से निकली सागर में समां गयी उस नदी को देखा
वही पर अपने परिपूर्ण समुद्र जल की कल-कल को देखा
हल्दिया की घटी में मैंने खुबसूरत नवविहंग को देखा
सच में बारिश के दिनों में सतरंगी किरण को गगन में देखा
माँ मैंने कोलकाता को देखा
6- उस शोर शराबे शहर में एक अनोखी ख़ामोशी को देखा
मानवता की एक वो हल्की सी नजर को देखा
सस्ते में गुजर बसर हो जाये ऐसे डगर को देखा
सच में शहर के एक ओर नदी किनारे मैंने मरघट को देखा
माँ मैंने कोलकाता को देखा
मास्टर मुकेश
