मुझे सपनों में भी सपने आने लगे
अब तो तन्हाई में हम गीत गाने लगे
फ़िक्र किसका करू ख़ुशी या गम का
क्योकि सोहबत में अरमा जगने लगे
जब मै उठा और उठ ही गया
हर कोई मुझे अपना बनाने लगे
मै देख ही रहा था की आया याद मुझे
की वो लम्हे जिन्हें समेटे मै लिए जा रहा था
वो लम्हे भी पीछा छुड़ाने लगे
कश्मकस सा होकर रह गया
अपनी शक्ल भी मुझे भुलानी पड़ी
जिन आईनों के सामने मै घंटो बिताया करता था
वो आईने भी अब मुझसे शर्माने लगी
मास्टर मुकेश
