1- बेटा है की बेटी कुछ समझ में न आये मोती
बेटा समझ कर मुबारक अली के जीने की सास हो गयी छोटी
एक तरफ विश्वयुद की इबारत खडी थी
दूसरी तरफ दूर देश में सफल हो रही थी रूस की क्रांति
अपने देश में राजनीतिक क्षितीज पर गाँधी की सूरज चमक रही थी
19 नवम्बर 1917 को जन्म ली मोती की नन्ही पोती
2- बचपन होती है क्या क्या शायद उसने जाना नहीं
माँ बाप जब हो जेल में वह रह जाती घर में अकेली
सब छोड़ दिया मोती ने इंदु को तोड़ दिया मोती ने
6 फरवरी 1931 क्या कम था
जो 28 फरवरी 1936 का दिन आया
और उस भगवान ने उसके प्यारी मा को दुनिया से उठा लाया
3- जीवन की गाड़ी आगे बड़ी 26 मार्च 1942 में उसकी शादी पड़ी
20 अगस्त 1944 में इंदिरा ने एक रत्न राजीव को जन्म दी
खुशिओ से दामन भरी प्रसन्नता में डूब रही
14 दिसम्बर 1946 में संजय ने अवतार ली
बाल किलकारियों के आगे सूरज की लाली भी फीकी पड़ी
फिर भी देश सेवा में दिन रात लगी रही
4- कश्मकश बढ़ने लगे ये धरती भी रो पडे
30 जनवरी 1948 को धर्म पिता गाँधी भी छोड़ चले
पत्थर भी रो रहे अब यही सोच रही सम्भलना है देश के लिए
जिंदगी के कदम बढ रहे सफलता कदम चूम रहे
पता नही मुझे भी ऊपर वाले क्या खिलवाड़ कर रहे
और 8 सितम्बर 1960 पति फिरोज भी जीवन लीला समाप्त करके जा रहे
5- सिने में ज्वाला जल रही पत्थर भी अब पिघल रही
जीना है किसके लिए इंदिरा अब सोच रही
कदम अब डगमगा रहा कुछ भी समझ न आ रहा
दो बेटा और पिता के सहारे अब भी जीवन कट रही
क्या पता मौत की देवी नेहरु की अंतिम सासे गिन रही
27 मई 1964 के प्यारे पिता नेहरु की अर्थी सज रही
6- आखो से सब कुछ देख रही पर मुख से कभी उफ़ ना कही
वह साधारण नही शेरनी सही तभी तो सब कुछ झेल रही
भगवान से वह लड पड़ी अग्नि परीक्षा देने के लिए जिद पर अड़ी
संघर्ष का पतवार लेकर आग की नदी में कूद पड़ी
इस रंग मंच के नाटक में अहम भूमिका निभा रही
इतिहास अब रच दी जब 19 जनवरी 1966 में PM बनी
7- उस समय दिसम्बर 1971 की घटना भी याद आ पड़ी
न चाहते हुए भी भारत पाकिस्तान से युद्ध छिड़ी
और इस चौदह दिन के संग्राम में इंदिरा युद्ध जीत गयी
सदमा उसको तब लगी आहत होकर गिर पड़ी
23 जून 1980 में संजय ने विदा ली बहू मेनका घर से निकल पड़ी
दिल होता तो रोना आता पर दिल आखे पत्थर बन गयी
8- जाते -जाते उसने हम दो हमारे दो का नारा छोड़ा
प्यारे दादा की लाडली पोती ने आनंद भवन को देश के लिए छोड़ा
पर सच ये है कि उसका साथ बारी-बारी से सबने छोड़ा
जीवन ने तन्हाई के साथ उसको गम दिया थोडा -थोडा
प्यार करती थी जिस देश को 31 अक्टूबर1984 को उसने छोड़ा
सच में काश वह बुधवार का अभागा दिन आया ही न होता
मासटर मुकेश
