1 इस कलम से अंजान हो तुम
इसकी तागत से नादान हो तुम
थोड़ी में समझ लो तुम
एक कलम की दास्तान हो तुम
सदा सत्य की भाषा बोले
सबके दिल की भाव टटोले
2 लिखी सभी इतिहास इसी से
दिनकर भी राष्ट्रकवि इसी से
गाँधी की पहचान यही
सुभाष की जान यही
रविद्र की नोबेल इसी से
भगत की फ़ासी इसी से
3 बिना बोले कैसे सब कह जाये
न जाने कैसे समझ आये
तोतली न भाषा इसकी
न वेदों की उच्चारण जैसी
सीधा न सरल पानी जैसा
न पर्वत के रस्ते जैसा
4 यह जगत पे भारी है
इसलिए सबकी प्यारी है
तोड़ने से यह टूट ही जाता
ये सबके दिलो को जोड़ता जाता
भावो से जब कोई ऊपर आये
सब कुछ सहज समझ ही जाये
मास्टर मुकेश
