ये गरीबी



1- इस नाम से मुझे भी बू आती है ये है की जाने का नाम नहीं लेती है 

मुझे तो पता नही ये चीज है कैसी लगता है जैसे परछाई है 

अपनी हालत पहले से चरमराई है इसलिए मजबूरी में अपनाई है 

अभी भी वक्त है सुधार करने की क्योकि बीच में बहुत बड़ा खायी है 

2- कुछ को सिहरते देखा मैंने तन से कपडे को दकते देखा मैंने 

बारिश के दिन एक बूढी माँ और बच्चे को ठण्ड से अकड़ते देखा मैंने 

भोजन के लिए तड़प थी फिर भी पानी नसीब न था 

घर में पानी के कारन वे रातभर खड़े रहे ये देख समय भी बेचैन था 

3- मै गाँव व शहर के गलियों के नुक्कड़ पर कई आवारो को देखा 

मै आमो और महुओ के नीचे गुजर बसर करते कई बंजारों को देखा 

रेलवे किनारे अपने बनाये शीश महल में उनको मै झगड़ते देखा 

मै उनके काले बर्तन में बस केवल पानी को उबलते देखा 

4- ट्रेनों में छोटी बच्चियों को गाते देखा अपने दुख की पीड़ा को उठाते देखा

 एक डोलक बजाये एक गीत गाये एक चुटकियो की तान सुनाये 

उसमे सबसे छोटे लड़के को कार्टून जैसा मुह बनाये देखा 

पेट न होता भेट न होता ऐसा कहकर बाबू भैया के आगे हाथ फैलाये देखा 

5-एक चार साल के बच्चे को पेट दिखाकर कुछ मागते देखा 

एक बुढ्ढे को चौराहे पर बासुरी बजाते देखा 

सोच शायद यही रही होगी उस बुढ्ढे की 

पेट के लिए कुछ मिल जाए ऐसा आस लगाये देखा 

6- किसी को लूला देखा मैंने किसी को लगडा  देखा मैंने 

आगे गली में खड़े एक किनारे एक अँधा देखा मैंने 

एक दोनों हाथ को देखकर सोच रहा एक पैरो को देखकर रो रहा 

वह अँधा भी न जाने अपने दिल में क्या टटोल रहा 

7- ये पहले से ही मजबूर है फिर भी हर बार हो रहे इनके साथ छल को देखा 

इनके लुटते हुए आबरू को मैंने इन्ही खुले आसमा के नीचे देखा 

मर्यादा की हर लकीर को औरो के द्वारा पार करते हुये इनके साथ देखा 

मै आये दिन आत्मा को धिकारने वाली ऐसी घिनौनी हरकत देखा 

8- देखो इनकी हालत एक भूली बिसरी यादो जैसी 

जेठ के महीने में लग रहा हो खड़ी दोपहर के जैसी 

मै तो देखकर इनको सहमा सा रह जाता हू 

सच में यार तू इंसान है या पत्थर सोच कर तुम्हे नीर नही आती मोती जैसी 

9- कोई आकर इनके इज्जत को ढक दे ऐसा मैंने नही देखा

 इनके ऊपर कोई झूठी दया और प्रेम वर्षा कर ऐसा मैंने नहीं देखा 

सब कुछ वो भगवान नहीं करता कुछ तो तुम्हे भी करना है 

लगता नही अब भी ये भलमानुष जगे हो ऐसा आसार नहीं देखा 

10- मैंने शादिया गुजरते देखा तिनका  तिनका बिखरते देखा 

आगाज जिंदगी को करते हर देश को सवरते देखा 

अपने आप में सब कुछ होते हुये भी 

इस देश में लाखो को भूख से मरते हुये  देखा 

11- जो सक्षम है दुसरे का बोझ सकने में

 उनको भला बूरा कहकर मुकरते हुये  देखा 

हर एक हस्ती की नीव इन्ही झोपड़ पट्टी के दम पर है 

इन्ही हस्तियो को इन गरीबो के पेट में लात मारते हुए देखा 

12- शिक्षा तो तब समझ आयेगी जब पेट में रोटी जायेगी 

नही तो अच्छा बूरा क्या उस भगवान की बात समझ न आयेगी 

लेकिन सब साथ मिलकर साहस के साथ मेनहत करे 

तब लगता है शायद मेहनत रंग लाएगी 

13- हम अपने को झुठलाते है या फिर व्यर्थ दिलशा दिलाते है 

या झूठी पहचान के खातिर हम अपने को गर्त में गिरते है 

ये गरीबी चीज है ऐसा जो शब्दों से बयाँ न  हो पाता है 

एक गरीब से पूछो तुम तो वो अपने होठ ही कपकपा पता है 


          मास्टर मुकेश 




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