1- ये मौसम की छटा निराली रे मन को भा गयी प्यारी रे
बदला को देखकर मो सरमाऊ छेड़े जब कोयल बानी रे
2-एक हवा का झोका आया जैसे सितार से किओ गीत गाया
खेतो को कंघी करते हुए सहमे सहमे दिल में समाया
3- एक हल्की सी झोका झाकी लगता है जैसे पूरी तैयारी
सूरज भी भाये चाँद भी गाये ऐसी है बसन्त बयारी
4-प्रसन्न पहाड़ जंगल झरना उनमे एक मुस्कान आया
सभी ने साथ मिलकर जैसे एक सुन्दर साज सजाया
5- ये प्रकृति छटा ऐसे बिखेर रही जैसे अभी अभी आसमा से आयी हो
श्रृगार का अद्दितीय रूप है जैसे किसी ने अभी अभी सजाई हो
6- प्रतीति ऐसी जैसे सारे जहा में एक सागर सी गहराई हो
चारो तरफ एक खामोश खुशियां जैसे लग रहा आई हो
7- प्रेम में अर्पण कोई हो जाये जैसे अद्दभुत दृश्य सजाये हो
पौधे के हर डाल के पत्ते कैसे खुद आप ही बिछ जाये
8- मैदान में बिछी घासे भी खुशीओ का लुफ्त उठाये
सरिता भी एन हवाओ के साथ लय छंद में लहराये
9- अमराईया पर कोयलीया कैसे विरहन को तरसाये
पीहू पीहू की रट कदम के नीचे वाला पपीहा लगाये
10- हल्का सा बूदा बादी जैसे जवानी के गूदा गादी
छन छन की मधुर गीत सुनाये जैसे पायलिया हो छ्नकायी
11- अधरों की मुस्कान ऊपर से आये जब बदला गीत गाये
ढोल मंजीरा तबला जैसे नगाड़ा और दुदुम्भी बजाये
12-नीला अम्बर पीला धरती जैसे माँ बच्चे से ममता करती
आखो के आगे खुले आसमान में इन्द्रधनुष की प्रतीति
13- सरसों के फूल कही पे आमो के बौर कही पे
दिख रहा हर जगह होलिका की डेर कही पे
14-साँझ को एक जुगनू आया अपने साथ मनोहर प्रकाश लाया
रात में ये ऐसे सुहाया जैसे तारो का झुंड धरा पर आया
15-मौसम की मनोहर अंगडाई है कैसी एक नसा सी छाई है
ऋतुओ की ये खासा है पर अभी बसंत का पासा है
16-नये मेहमानों का अभिनंदन करे जैसे ये कर बंदन करे
नव विहंग के लिए जैसे सदा सुंदर मंथन करे
मास्टर मुकेश
