जेठ की दुपहरी

 


1-जेठ की दुपहरी में पाँव जले की पूरा गाव जले 

शीतल बरगद की छाँव में नन्ही कलियों की जान जले 

हाशिये पर सब कुछ ऐसे अटका जैसे मरघट पर लाश जले 

तपती धूप को देखकर किसानो के ह्रदय के साथ आंख  जले 

2-सीकर माथे से ऐसे लुढ़के जैसे हरी फसलो की डाठ जले 

तिल तिल कर तपस की भाति प्रकृति की ह्रदय ताल जले 

अकुलाये हुए सब बेशुध हुये आत्मा भी छिंनतार  जले 

ये जेठ की दुपहरी नहीं हमारी दुश्मन है इसलिये सब इससे जले 

3-खेतो और सिवानो में धू धू करके पारदर्शी लौ के साथ एक राग जले 

ये धूप नहीं जेठ की दुपहरी है बगैर लकड़ी व धुआ के आग जले 

धरती क्या अंगारा हुयी कोयले के अगीठी की भाति प्यारा हुयी 

शाम ढले जो बाट चले पाँव में चप्पल के चाम जले 

4- आशा अब आसमान टिके बारिश बिन प्यारी नदिया जले 

काली काली चहु ओर दिखे मांसल ह्रदय का भाग जले 

जल जल कर सूख गयी ह्रदय के साथ झील भरी आखिया जले 

नजरे टूट गयी इस दुपहरी के आगे जैसे लौ की भाति मरुस्थल जले 

5- हर कोई इस दुपहरी से इस कदर डरे जैसे ये मौत की देवी हो 

तान्डव नृत्य करती हुयी मुण्डमाला पहने हुयी अभी बली वेदी से निकली हो 

इसका स्वरूप है सिर्फ व सिर्फ जलना और दुसरो को जलाना 

बदले के भावना में कई शदियों से यह दुपहरी सिर्फ इसी ताक में हो 

6-इसको चराचर के किसी प्राणी पर दया एक टूक भी न आती 

किसी की यह दुपहरी नहीं सुनती किस गुण के कारण यह इतना इतराती 

न जाने यह नाज किसका करती हर किसी को जलाये बिना दम न भरती 

इसको न डर न लाज इसके सामने जो भी आता उसको भाति भाति से जलाये जाती 

7-बैशाख के अंत से इसका आगमन हो तयारी के साथ हो  जाता 

प्राणी के साथ पशु पक्षियों को भी यह दुपहरी एकदम नहीं भाता 

इसके पता चले बिना लोग गिनती गिनते इसके दिन जाने को 

दिल पर हाथ रखकर एक ही बात सब सोचते इस जेठ के बाद आषाढ़ आता 

8- इस जेठ को लोग कम आषाढ़ महिना को ज्यादा याद करते 

गड़े धरती में धूप के कारण दादुर भी इस जेठ की जाने की प्रतिक्षा करते 

कही न कही इसी दुपहरी के कारण प्राणी अपने धर्म को भूल जाते 

हमारे साथ बारिश के झम झम आवाज के लिये नव विहग प्रतिक्षा करते 

9- हाल क्या बताऊ इस इस धरती का इस दुपहरी के कारन कितना जली है 

अनुमान भी मेरा लगाना सब गलत होगा क्योकि यह धर्म स्वरूप धरती है 

मेरे द्वारा सच में लिखा हुआ हर अल्फाज मुस्कुराहट के साथ जला है 

फिर भी देखो इसको वही अकड वही घमण्ड ये जेठ की दुपहरी यथावत बनी है 



मास्टर मुकेश 



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