किसे ढूढता है मूरख


 1- बात कभी ऐसे थे जो सब कहा भी करते 

तू आरती लेकर किसे ढूढता है मूरख 

भगवान है खेतो और सिवानो में 

मंदिर क्यों जाता पूजा करने वो सच में सोया है खलिहानों में 

2- सच पूर्वजो के आखो में एक गहराई थी 

माथे पर सूरज की चमक छाई थी 

सूखी रोटी खाते सोते तरुवर के छावो में 

बेबश और लाचार को सहारा देते जब वो पड़ा हो किसी रहो में 

3- पूर्वज हमारे कायर नहीं वीर थे 

पीठ पर नहीं खंजर छाती पर घोपते थे 

अब ऐसा देखने को अखियाँ तरसते है क्योकि सब लगे है अपने दावो में 

अभी भी तू ढूढता मूरख ऐसा जब मिल जाये तुझको लाखो में 

4- यह सत्य है वो पूर्वज हमारे आन मान थे 

बातो की कीमत करते वे भगवान स्वरूप थे 

दिन रात वो इमानदारी से मेहनत करते लगे नहीं रहते वासनाओ में 

अब कहाँ मिलता ऐसा देखने को मूरख क्योकि सब है आकाक्षाओ में 

5- तब हर घर के दरवाजे छोटे होते 

हकीकत में वो छोटे दरवाजे झुकाना सिखाते 

ज्ञान विज्ञान आचार विचार होते उनके हर एक कामो में 

मेहनत के बिना जीवन व्यर्थ होगा इसलिये विश्वास नहीं करते थे आरामो में 

6- कुछ कम न थे  आज के विज्ञानों से 

उनको पता था इसलिये डरा करते थे अपने संतानों से 

वो जानते थे एक दिन ये पड़ जायेगे स्वप्न के ख्यालो में 

बुध्दिमान थे क्या अंदाज थे शदिया पहले जो दिख गया उनको अब के ज़माने में 

7-दूर का दर्शन करा देते वो केवल अनुमानों में 

बिना बोलो साडी बात कर जाते वो केवल इशारों में 

गलत होने पर वो देवताओ को नहीं छोड़ते थे चाहे आना पड़ जाता युध्द के मैदानों में 

अब साडी उपलब्धि है फिर भी विश्वास नहीं लोग रहते हमेशा संशय भरे फसानो में 

8- पूजा पाठ नहीं वो प्रार्थनाओ में विश्वास करते 

भगवान के साथ हर प्राणियों की सुधि लेते 

सेवा एक मात्र उनका ध्येय था वो न रहते किसी आकांक्षाओ में 

वो कभी आसिया बना गए हम है की लगे है उनके आदर्शो को गवाने में 

9- पूर्वज थे पूर्वज वो हमारे पूर्वज 

ऐसे ही रोक  लेते छिति जल पावक 

नाज मुझको हैं गुण गाता संसार रे किसी भी बात में कभी नहीं आते थे मान में 

उनका संतान होने पर तुझे लज्जा न आती जाओ डूब मरो रे किसी तड़ाग के गहानों में 

10- पत्थर को तरासकर भवन बना दिये 

चट्टानों की छाती से दूध निकाल दिये 

कर देते वि अचरज भरे काम फिर भी कभी विश्वास न किये कीर्तिमानो में 

आधी रात बीत गयी भोर हुयी उठ जा रे पगले तू पड़ा है अभी भी सुखद स्वप्नों के जंजालो में 

11- उनमे त्याग था बलिदान था 

साहस धैर्य लगन का वह युग मूर्ति स्वरूप था 

नहीं देखने को मिलता रे सच में जो थे कभी इतिहासों में 

शदिया गुजर गयी रे पगले तू अभी भी पड़ा है ख्यालो में 


मास्टर मुकेश 






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