शहरों को जिन्दा दिल की तलाश


 1- मरघट सा लग रहा हू अपनी छ्या तक रहा हु

अपनी सासे गिन रहा हू खामोशी से लड़ रहा हू 

हर कोई आता है तुफानो की भाति चला जाता है 

तक रहा कब से सच में तेरी ही प्रतीक्षा कर रहा हू 

2- कई शदिया गुजरते देखा मैंने अपने को बिसरते देखा मैंने 

शादिया गुजारी तिनको से बनाने में उन्ही तिनको को बिखरते देखा मैंने 

हाँ मै थोडा डर गया हू इस कदर जैसे कसीद ने मुझे दी  हो खबर 

एक उम्मीद ही बची थी उन्ही उम्मीद को बिखरते देखा मैंने 

3-अब ना मुंडेर पर मेरे कोई चचआहट होती है 

ना ही चांदनी रात में कोई दीपक रोता है 

बाला की झनकार बंशी की पुकार कहा मेरे नसीब होता 

बस अपनी गली में हर एक बंद कमरा रोता 

4- कभी मै सोचता हू ये लोग हमेशा क्यू भागते है 

कुए से पीछा छुड़ाके हमेशा जब खाई ही पाते 

ये सब देखकर मुझे रोना आता है 

इनको न जाने ऐसी जिंदगी क्यों भाता है 

5- हम पुकारते है पर हमारी पुकार इनको  नही सुहाती है 

ये भी सच नहीं की इनके जीवन में कोई गीत रंगत लाती है 

हर जगह आपा धापी हर जगह मारा मारी 

शदियो  से ऐसा है फिर भी इनको अकल न आती 

6- कुछ थे जिनके होंने से जी में जान होता था 

उनके ही भाति मेरे मस्तक को सलाम होता था 

आसू अब सूख चूके कही ऐसा न हो ह्रदय थम जाये 

सुन सको तो सुन लो मै तेरा ही दम भरता था 

7- ख़ामोशी मरघट से ज्यादा मेरे गलियों में दिखता है 

जो सम्भाला था शदियों से विरासत अब नस्तेनाबुत लगता है 

अब जीवन से नाता तोड़ना मेरे लिये श्रेस्कर होगा 

जो कुछ था मेरा आबरू अब वह रोड पर खुलेयाम  बिकता है 


मास्टर मुकेश

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने