1-क्या कहे कौन खुद गर्ज यहा
प्यास भी बुझती नहीं पानी जहाँ
जिक्र कैसे करू मै हर एक पहलू का
एक दीपक के बिना तिमिर घनघोर जहाँ
2-है खड़े वे भी मजलूम बनकर
कैसे करे जिक्र उनका हम मरम बनकर
थे न जाने कैसे वे हमें तन्हाई दे बैठे
बिस्मय में हम भी हो गये मूक एक दर्शक बनकर
3- पाँव में न उनके छाले है धूप में एकदम आले है
चहरे पर एक मुस्कान है बानी भी उनकी भाले है
राह गुजर बस देख रहे आखो को बस सेक रहे
हाथ में रंगत भरी छाले है न कान में उनके बाले है
4- केश बिखरे धूलभरी तिमिर उनकी बाले है
गोदी में बैठा दूध पिता एक उनकी चिरागे है
जहर वो खुद पीते अमृत पान करते है
चुप है वो उसके लिये सब किस्मत के धागे है
5- एक हम सफर उसके साथ महज सुखी रोटी उसके हाथ
न किसी सपनो का साथ उसके सर पर चाँद तारो का रात
धूप से थकते छाँव की गीत गाते आपस में झगड़ते जाते
है कुछ न कम प्रीत उनकी काम भी करते साथ निभाते
6- है किसके सहारे नाव उनकी न सुनते वे अपने मन की
ना अपनी बराबरी औरो से करते ना सुधि लेते तन की
ध्येय उनकी अंतिम अंतिम उनकी मंजिल
मजदूर है हम मजदूर ही रहेगे जैसे सौगंध ले ली ही रब की
7- ये उनकी पीड़ा है या खुद उनकी जिंदगी
सच में वो पिघला ही देगे पत्थर की मूर्ति
लगन उनकी देखकर देवता भी सिहराते है
क्योकि इनके जिअस कोई न कर सकेगा बंदगी
8- किस आसू में लिखा डूबोकर विधि ने इनकी ख़ुशी
शिकायत भी नहीं उनको जरा सा न ही कोई बेखुदी
फिर भी ऐतवार बफा कोई इनसे सीखे
मजूरी बेवक्त करते जैसे मिलाती हो जीवन की मदहोशी
9- राहगीर को राह बता देता जीवन का ऐहसास करा देता
पत्थर को चीर कर नूतन आलोक भरा पथ प्रशस्त कर देता
थक कर न थकते पाँव उसके सच क्या ह्रदय न रोते सबके
एक ऐहसास वह भी मेरा अपना यह मान ले सब अब से
10- ऐ मजदूर तू कौन देश का का वासी है
ह्रदय मर्म देह कठोर जग में तू सच्चा प्रवासी है
मेरे दिल ने तुझे सच्चे दिल से प्रणाम किया
क्योकि तू सच्चा मानुष तन जीव अभिनाषी है
मास्टर मुकेश
