1-है खबर किसे रात आगोस में लेगी किसे
उलझन है इतनी मुझे जानने को फुर्सत मिले किसे
यू करते है हम सुबह की प्रतीक्षा
क्या पता वह सुबह बक्शीश क्या देगी किसे
2-लेकर खते चल चूका कासिद आज नहीं तो कल आएगा
घुघरू की झंकार फूलो की सुवाष रेगिस्तान से कहा आयेगा
उनसे क्या आँख मिचोली खेलना जिनकी नज़रे तुझी पर हो
बख्स सको तो बख्स लो खुद को गैर महफ़िल से नूर कब तक पाइयेगा
3-चलते चलते कई शीश महल तक जा पहुचा
पर कोई भी एक दिल भीतर न आ पहुचा
हजार ख्वाइसे किस लिये जरा भी पता नहीं
चाहत से आखें मिलाते मिलाते कब कफन तक जा पहुचा
4-इन आखो से न जाने कितने को ढहते देखा
जीवन ही नहीं शीशे को भी बिखरते देखा
अन्त से अन्त समय में है ऐसा सब जानते है
फिर भी लेकर चलते है सर पे दुनिया का ठेका
5- आबरू बचाने के चक्कर में खुद ही मिट गये
जरुरत से ज्यादा खुद के लिये आसियां बना गये
फूल तो न जाने कब कब गीर ही पड़ा
पर काटें दामन पकडे हुये उम्र भर साथ निभा गये
6-हर पहलु का अपना अपना अन्दाज ही निकला
खुद को होश भी आया वक्त ही जब निकला
जहाँ में फूल है तो काटे भी जरुर होगा
तगाजा करने के बाद किसी और का कसूर न निकला
7- आईना देखने के बाद सच भी झूठा ही निकला
कोई सजदा भी मुझे करता है ये फरमान भी झूठा निकला
आसुओ को डुबोते रहे पर कोई हल न निकला
निकल ही गये जहाँ से पर सच में वहम न निकला
मास्टर मुकेश
