बोध की एक पहल


 1-अब रैन मिले तब चैन मिले चैन मिले कब सोच रहे 

बुध्दि जुक्ति सब बिफल भये कृतकार्य सब अकारण गये 

जोग जप तप वैराग्य सब युक्ति ज्ञान व्यर्थगये 

मान गये परमात्मा बने मानद्वैत रहे किंचित न आराम मिले 

2- सब वेद गहे पुराण बाचे ना राम मिले ना श्याम मिले 

आशा की उम्मीद टूटी अब तक ना आत्मसार हुये

जल बिन मं तस हालत हुयी बेबस और लाचार हुये 

मै चलकर एकदम टूट गया प्रकृति पर अब न मोर जोर चले 

3- मै वीर नहीं साहसी नहीं ना समरवान ना शूर 

पग पग ठोकर मेरे आगे है अंधकारो जैसा नूर 

रहे होगे वो कोई और जो वीरता और साहस का कठोर परिचय दिये 

पार न पाऊगा एक तेरे सहारे मेरा दम्भ मान हुआ सब चूर 

4-पास तो तू हर वक्त था मेरे तेरी कीमत कुछ समझ न आया 

भेद मिटा तब बोध हुआ अनमोल रतन को समझ पाया 

थोड़ी देर हुयी नाथ तुझे पहचानने में मेरी अज्ञानता तज देना 

बस तजना मेरी मेरी अज्ञानता को भूल से तू मुझे न ताज देना 

5- तेरे सहारे बस तेरे सहारे हू इस भौतिक सागर में अकेला 

मान गया बस जान गया तेरे सिवा सब है माया का मेला 

क्या मै सोचु क्या मै जानू सारे चराचर में सब तेरा ही खेला 

बस तेरी प्रीत रहे अब मान रीत रहे शदियों तक मै भटकता रहा अकेला 

6- ब्रम्ह स्वरूप तू राम श्याम रूप तू इसमें किंचित नहीं संदेह 

तुझे पाया न्र भेष पीछे गुरु हुये अनेक जो मिटा दिये सब क्लेश 

क्या दू तुझे लाज आवे मुझे इसलिये करजोर करू अनुरोध 

कोटि कोटि चरण बंदन सबको ऐहसान सबके बहु  अनेक 

7- नाथ न साधु न भक्त न ही मै जोगी सन्यासी 

जप तप तीरथ व्रत मुझे न भाये न ही मै अचारी विचारी 

सेवक धर्म से मुझे डर लागे इसके लिये कौन सपने में जागे 

कर कर विचार ह्रदय थक गया अब तक कुछ समझ न आये 

8-कुछ नहीं हू मै कुछ भी नहीं पर सच तो यही की तेरा हू मै 

तू मेरा है बस इतना जानता हू मै इसी को परम सत्य मानता हू मै 

कर जोर चलू तेरी ओर चलू बस ह्रदय में तेरा ध्यान धरु 

नदियों की धारा की भाति बिन आशा और प्यास के सागर में विलय करू 


मास्टर  मुकेश


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