बाँरिश का एक दिन


 1- सुबह होतेमाँ बोली उठ जा जा रे पगले अब कर न ठिठोली 

रातभर तू सोया नहीं क्या जागने पर क्यू फिर दूजा करवट ली 

त्रिभुवन पूरा जाग गया नित कार्य में अविलम्ब लग गया 

लाज शरम छोड़ के अब भी तू सोया है तुझे मै लगती हू क्या पहेली 

2- फिर मैंने आहिस्ते से एकबात छोड़ीमाँ बारिश अभी हो रही 

तब माँ बोली तू आज मत खाना भोजन में दाल चावल रोटी 

होश में तब छत आया अचानक रिमझिम पानी का गीत सुन पाया 

बारिश के गीत के साथ माँ ने मुझ लायक को स्वर में दो चार टूक और बोली 

3- माँ गयी धान लगाने को और मुझे कह दिया खेत पर आने को 

देख बारिश मोरा मन हरषे तब छोड़ दिया मैंने सुखासन को 

हो लिया आसमान के निचे अपने को समर्पित किया बारिश के आगे 

बारिश नहीं जैसे मेरी प्रियतमा हो मिलते ही उससे भूल गया खुद को 

4-सहमे सहमे एक गीत बजे पानी की बूद मोती की लड़ी लगे 

नैन झुकाये खुद सरमाये मेरे अंगो को छूते हुये मेरे बहो में भर जाये 

इसे देख दादुर हरषाये मृदुल कोयल प्यारी गीत गाये 

मोर मोरनी मदहोश बेसुध होके प्रीत के संग नाचे गाये 

5- तड़ाग भरे सब ताल भरे बारिश में अह्लाद सा उपवन करे 

नव बालाओ को प्यास को प्यास भरे आखो में एक आस हृदय में एक राग भरे 

नदिया क्या नववधु बाला हुयी रवानगी की एक तारा हई 

सम्भले न जाये जैसे जवानी प्रेमियो के ह्रदय में ये प्यास भरे 

6- मौसम एकदम रमणीय सुहावना बारिश का आनन्द लुभावना 

खुशिओ के अंदाज चेहरे पर समाया इस जहा को न जाने क्या सुहाया 

रिमझिम रिमझिम सावन बरसे देख चराचर को मोरा मन हरषे 

जैसा खोया हुआ किसी का प्यार मिला इस जहा को अब क्या कहना 

7-तरुवर भी बारिश का आलिगन करे एकचित्त होकर जैसे अभिनंदन करे 

झोपड़ी मकान अलग राग भरे आकाश मीठा घर्घर नाद करे 

खिड़की से जब उठे झरोखा फुहारे कुछ कहने को बेताब खड़े 

बूद गिरे जब धरती पर जैसे बाला पायलिया झंकार करे 

8- दिल बैठ गया मुझे कुछ मौसम भी हो गया एकदम सा चुप 

एक ही राग एक ही गीत बेसुध हुआ मेरे मुह से न निकले एक टूक 

रम गया थम गया मै इस बारिश के साथ जम गया मै 

जैसे ही विचार सब टूटा माँ के पास खेत पर पहुच गया मै 

9- देखा इसी बारिश में मैंने बहुत कुछ फिर भी इस्तेफाक न हुआ 

जैसे इसी की जरूरत दिल में दर्द था पर जरा सा ऐहसास न हुआ 

मिला इस बार मुझे जो पहल वः किसी रवानगी से कम न था 

बहुत हुआ ऐसा पहल फिर भी ऐसा कभी आत्मसात न हुआ 

10-बैठ गया फौहरे भरे आसमान के निचे छोड़ दिया दुनिया को मै पीछे 

जब हृदय तार जोड़ लिया बूद की लडियो से पाया हर बूद को अपने से नीचे 

बस एक आनन्द था बस एक आनन्द था उन खूबसूरत पलो में 

अन्दर बाहर सब थम गये उन फौहारो भरे आसमान के नीचे 

11-हे माँ तुझे कोटि कोटि प्रणाम है तुझपे मुझे ऐतराम है 

निक्षावर तुझपे मै कर दू बोध ज्ञान यह काया तुझसे ही सब भाष है 

तू न होती माँ मै यहा न होता पड़ा रहता किसी जमघट में वही पर रोता 

और शुक्र तेरा जो मुझे नीद से जगाया बारिश से नही माँ तूने मुझे खुद से मिलाया 


मास्टर मुकेश

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