जीव से ब्रम्ह तक


 1- काल ग्रास एक सत् सकल जीव सबहि के 

बुझ न पाए बृथा मन जाये मन मानत नाही अबहीले 

जौ जीव चतुरानना बनिहे 

मर्र्यो सो परयो दोष न दिन्ह हमहिके 

2-सकल जीव चराचर त्रास बहुरि समेटे 

अमृत रस्वादन हिय में हाथ मदिरा लेके 

दुःसह दुःख पाप आशा तृष्णा जेके 

मिथा नाम हरि का भजै सुधा रस तेके

3- बिषयी साधक सिध्द सयाने 

मान ममता माया सबही के लुभाने 

तन मुरझानी मन माया बखानी 

हरि भजन बिन सब माया कहानी 

4-जै दिन बितिहं मन पाछे पछितहं

काया साथ न देहिहं नयन नीर बहईहं 

थोड़े दिन का कालक्षेप एमे न रहिहं अलेप 

सब सहज बीत जईहं जब हरि पार लगईहं 

5- होय किन साधन जतन प्रयासा 

भव भय छूटे छूटै कब सब आशा 

साधन जतन अनेक पतन जीव के त्रासा 

होय जीव मुक्त जब पणत राम के पाशा 

6- जेहि विधि माया मुये सो विधि अपनाईये 

बिनु हरि कृपा मुक्ति न होये ऐसा मान जाईये 

आस त्रास सब छोड़ रे बन्दे 

असीम कृपा हरि की ऐसा बार बार दोहराईये 

7- पहिले नाम रूप सहारा 

दूजे छाडीये विकल संसार 

तीजे सततं देख विचार अपरा 

तब भय भव मुक्त होये जीव बेचारा 

8- अति दूभर स्वमारग अति सहज में खोई 

जेहि प्रीति सत् गुरु राम जस होई 

सकल धरम करम छुटहि सहज सुख होई 

स्वदर्शन रामरूप सततं तब होई 

9- हे कृपालु तू दयालु तुझ सा ना जग में कोई 

मै अधम जड़ प्राणी आँख दीदा फोड़ मै रोई 

जो रुचै सो करो मम् ह्रदय बस आन बसों 

हे प्रभु विनती यही गैर समझ अपनाय लो मोही 


मास्टर मुकेश

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