वो बखत आ पहुचा


 1- फूल खिला था चमन में बहार के वास्ते 

उसे क्या पता काटें होगे खुद के रास्ते 

एक हल्की सी मुस्कान ही थी उसमे 

अभी खिला ही न था की माली का बखत आ पहुचा 

2- एक एक दिन कुछ ऐसे संजोते रहे 

फूलो को छोड़ केवल शूल ही बोते रहे 

मनमस्त था मदहोश था वहम मगरूर था 

नूर का एक किरन न था की बेनूर का बखत आ पहुचा 

3- जीना भी क्या जीना कुछ ऐसे जीना 

मोती को छोड़ सीप का पानी पीना 

मै मेरे को छोड़ कभी खुद कोअख्तियार न किना 

अभी फेरे ही न पड़े की जनाजे का बखत आ पहुचा 

4-अभी अभी खुदा से एक एक सौगात ही मिली 

एक खूबसूरत परी जिसकीआँखे नीली 

तन्हाई से उठा ज्यो ही उसकी साँसे मिली 

जीना तो शुरू ही न किया की कसीद का बखत आ पहुचा 

5- सतरंगी दुनिया में सतरंगी खेल है 

ऐतिन्दियो का आपस में खूब मेल है 

लोभ मोह इच्छा का प्रबल बोल है 

उजाले को जान ही न पाया की अंधियारे का बखत आ पहुचा 

6- ये कारवा ये काफिला ये कब कम हुआ 

न कल ज्यादा थे न आज कम हुआ 

एक न इधर के दूजे न उधर के 

ये समझा ही नहीं की मजलीश से बिछड़ने का बखत आ पहुचा 

7- समझ खूब है डर है सामने धूप है 

देख गौर से काठ व पानी का क्या खूब दस्तूर है 

तुझसे भी निभ जायेगी यारी ऐसा ही वसूल है 

निश्चय कर ही न पाया की निकलने का बखत आ पहुचा 

8- अब तक कौन हुआ किसका किसका कौन हो पायेगा 

एक दर्द तो बाट नहीं पाते सुख कौन बाट पायेगा 

समझ तैरने वाला भी अंत में एक किनारा ही पायेगा 

देख तेरे समझने से पहले अन्त का बखत आ पहुचा 

9- सुन बन्दे उसी का रहम उसी करम 

हर घटा हर मंजर में सच उसी का मरम 

देख ऐहसान कम नहीं उसकी अभी भी सासे  है

ऐसा मान न पाये की इन्तकाल का बखत आ पहुचा 


मास्टर मुकेश


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