1-जिंदगी के रास्ते यू न जाने कब से चलते चलते
थक सा गये है हम खुद के दम निकलते निकलते
हाँ थोडा जी तो सकता हू तेरा साथ चाहिये होगा
एक पल अब दो पल हो जायेगा बस तेरे साथ चलते चलते
2-उम्र भर जिसे मै याद करता था
उसी के लिये मै दिन रात फरियाद करता था
था न जाने मै शदियों से बेकरार कम्बख्त
वो काली रात ही निकली जिसका मै तलाश करता था
3- उस ख्वाब का क्या हकिकत कहू
बस उसके लिये हर तीखी दर्द को सहू
सबकी नजरो में खूब मै मालामाल हो गया
कम्बख्त नीद टूटते ही शीशा बिखर के साफ़ दीवाल हो गया
4-उनकी आँखों में खुद के लिये एक घर बनते देखा
उनके लिये मै खुद हल्के हल्के बदलते देखा
उन्ही से शिकायत उन्ही की फरियाद बस उन्ही की याद
नींद टूटी न वो ना उनकी आँखे बस एक ख्वाब बिखरते देखा
5- हर झूठ न जाने क्यों सच लगता है
खुद गैर भी होकर ये जहाँ अपना लगता है
ये रात सही है या ये दिन सही है
अब किसी एक को चुनना उलझन सा लगता है
6- हर इन्तहान देने को तैयार है सब किसी एक के वास्ते
राज इतनी अनसुलझी नहीं किसी के वास्ते
न कोई राह रहेगा न ही कोई राहगीर
क्योकि हर नदिया भी होती है किसी खामोश मरघट के रास्ते
7- ये गजब का ख्वाब है जैसे आप है
हम फ़िक्र किये जा रहे है जैसे पाप है
रात सोकर बिताई या जगकर क्या फर्क पड़ता है
उलझन में जिए जा रहे जबकि झूठा ही ख्वाब है
मास्टर मुकेश
