साँझ का वक्त और सूर्य कि लालिमा बेहद मनोहर छठा बिखेर रही, इस दृश्य को देखकर मै कुछ बेचैन सा हो गया | कभी कभी हर प्राणी इतना बेचैन हो जाता है कि वह अब करे तो क्या करे काम कई करने को होते है पर काम करने का जी नहीं करता | मन में अजीब सा वेचैनी हलचल हो रही हो वैसी हालत आज मेरी हो गयी
आँज मै अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रहा हू एक अजीब उमंग और उल्लास भी है न आज बसंत है न ही कही हरियाली प्रतीत हो रही है न कोयल गीत गा रही है न ही आसमां में रंग बिरंगी तितली और चिड़िया मन मस्ती में झूम रहे है आखिर हमने क्या किया कि हमारा मन इतना व्याकुल है हमें ऐसा लग रहा है कि हमें सजा मिल रही है लेकिन ऐसी कोई बात नहीं मौसम कि छठा निराली और मनोहर है तभी हमने आकाश में सूरज को डूबते हुए और पक्षियों को लौटते हुये देखा तो हमारे वैरी ह्रदय में भी अनायाश सागर कि तरह हिलोरे उठने लगा फिर क्या था हमारे बेचैन दिल को करार आ रहा था क्योकि हम भी लौट चुके थे बचपन में |
लोग आज भी कहते है "तन पचपन का मन बचपन का "आख़िरकार बचपन बचपन होता है बचपन तो सबकी होती है वैसी ही मेरा बचपन था वैसे तो बचपन में तो बहुत घटनाये हुयी है उनमे से एक एक घटना स्पष्टतः याद है मुझे वैसे तो मेरी पढाई घर पर चलती थी क्योकि हमारे घर में लोग पढ़े लिखे थे इसलिए सामान्य शिक्षा घर पर ही मिली थी जैसे स्वर व्यंजन गिनती पहाडा आदि |
जुलाई का महिना था मै नामांकन के लिये अपने पिता के छोटे चाचा के साथ पास के विद्यालय में गया और हम सीधे प्रधानाचार्य जी के पास पहुचे जिस कमरे में प्रधानाचार्य बैठे थे | उसमे प्रधानाचार्य बिल्कुल अकेले थे हमने उनसे आज्ञा ली और कमरे में प्रवेश किया | प्रधानाचार्य जी से नामांकन के लिये बात हुयी तो प्रधानाचार्य जी ने हमसे कुछ सवाल किये जैसे पहाडा कितने तक आता है हमने कहा 20 तक फिर उन्होंने वर्णमाला के बारे में पूछा उसके बाद हमसे पेपर भी पढ़वाया गया हलाकि हमें याद है कि हमने समाचार पत्र बहुत तेज तो नहीं पढ़ा लेकिन फिर भी पढ़ा |
वे जितने भी सवाल पूछे हमने उसके ठीक से जवाब दिये इसके बाद कुछ क्षण सोचने के बाद प्रधानाचार्य जी हमसे स्वयं पूछे कि "तुम्हारा नामांकन किस कक्षा में कर दू "यह हमरे लिये दुविधा का प्रश्न था लेकिन मै कुछ समय सोचने के बाद तीसरी कक्षा में नामांकन का अनुरोध किया इसके बाद प्रधानाचार्य जी हमसे फिर पूछे कि "तीसरी में पढ़ लोगे न " उत्तर में मैंने हां कहा और इस प्रकार हमने स्कूल की शिक्षा तीसरी से प्रारम्भ किया | आज लिखते समय ऐसा आभास हो रहा है कि जब प्रधानाचार्य जी (जगदीश पटेल ) ने हमसे पूछा कि अरे बेटा तुम्हारा नाम किस कक्षा में लिखू तो वह दिन मेरे लिये किसी नोबेल पुस्कार प्राप्त कर लेने जैसा ही था |
