आदमी



1- वह तो आदमी है जिंदा है तो जिंदगी 

पर जिंदगी से कुछ मागता नहीं 

अरमा क्यू न बिखरे आसुओ के शैलाब क्यू न उमड़े 

पर जिस डगर से नाता जोड़ लिया उसे छोड़ता नही 

2-बीत रही जिंदगी ऐसे जैसे मरुस्थल में बहार है 

जिंदगी की न कोई शाम न ही दो घडी आराम है 

उसके लिए सूरज आये और चला जाये 

बस दिखाती उसे हर घडी अपनी मुकाम है 

3- जाने अंजाने में हर शख्स अपनों में तन्हा अकेला है 

सब जानते है दुनिया दो दिन का मेला है फिर भी झमेला है 

राही है सब अपने राह के रुकना नहीं कभी भी हार के 

काटो पर ही चलकर मिलता है मंजिल बहार के 

4- हर चहरे के पीछे एक गहरी राज है 

हर शख्स इतना टूटा है जैसे जीवन में काली रात है 

जिंदा लाश बनकर हर व्यक्ति चलता है 

चेहरा तो कुछ बताता जबकि भीतर से तिल तिल मरता है 

5- शर्द लम्हे से पीछा छुड़ाना आसान नहीं है 

हर शख्स को सेज मिले या चिता ऐसा फसान नहीं है 

 पिते है लोग अपने को भूलने के लिए तन्हाई के बाद 

फायदा उसका भी नहीं क्योकि याद आते है सब पिने के बाद 

6-कौन किसके लिए रुकता है या पीर परायी करता है 

खूबसूरत फूलो के साथ काटा जरुर रहता है 

एक आदमी आदमीको क्या देगा 

पर व्यक्ति ही हर शख्स के जीने का मक्सद होता है 

7-दर्द से डरना क्या पानी बिन तड़पना क्या 

निखार भी आती है कुन्दन में तपने के बाद 

साहिल में कस्ती कभी कभी डूब ही जाती है 

फिर भी आदमी तो वही है जो रुकता है मंजिल पाने के बाद 


मास्टर मुकेश 


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